उलझा रिश्ता सुलझाऊ कैसे।

मुझे इल्म नहीं है, उस को रुला के मुस्कुराऊ कैसे। धागे होते सुलझा लेते, उलझा रिश्ता सुलझाऊ कैसे।

वक़्त सा बदला है, अब नाता रेत सा फिसला है। टूट के कुछ ऐसा बिखरा, के फिर ना सम्भला है।

दिल को बहला भी लू, पर उसे मैं ये समझाऊ कैसे। धागे होते सुलझा लेते, उलझा रिश्ता सुलझाऊ कैसे।

जतन किये बहुत के रिश्ते में गांठ ना पड़ जाये। बड़ी मिन्नतों से बंधी डोर, ये बंधन सदा मुस्काये।

वो अधूरे रहे जतन सारे, मैं पूरे करके दिखाऊ कैसे। धागे होते सुलझा लेते, उलझा रिश्ता सुलझाऊ कैसे।

नगे पाँव काँटों पर चलके, फूल बिछाए राहों में। छुपाये दर्द, अश्क ना छलकने दिया निगाहों में।

अंदर समेटे अश्कों का निगाहों से मेल कराऊ कैसे। धागे होते सुलझा लेते, उलझा रिश्ता सुलझाऊ कैसे।

कच्चे थे धागे प्रेम के, अफ़सोस के जोड़ ना सके। खाख कर मुझे, उन तुफानो का रुख मोड़ ना सके।

जीत के भी हारे, फिर ये झूठा किरदार निभाऊ कैसे। धागे होते सुलझा लेते, उलझा रिश्ता सुलझाऊ कैसे।