कहने को तो जान थे, प्यार की सौगात मिल ना सकी,
मेरी वफ़ा भी उनके मिज़ाज़ बदल ना सकी।
वो दर्द देते रहे, मोहब्बत जान के हम सहते रहे,
फिसली ज़िंदगी रेत सी इस कदर, के फिर सम्भल ना सकी।
कहने को तो जान थे, प्यार की सौगात मिल ना सकी,
मेरी वफ़ा भी उनके मिज़ाज़ बदल ना सकी।
वो दर्द देते रहे, मोहब्बत जान के हम सहते रहे,
फिसली ज़िंदगी रेत सी इस कदर, के फिर सम्भल ना सकी।