खुली आँखों में सजाये थे ख्वाब, हर ख्वाब अधूरा रह गया। पल भर का था इश्क़ का खुमार, वो भी आंसू बन बह गया।
इश्क़-ए-मोहब्बत में देखा ख्वाब, पूरा हो न सका। मुकम्मल होता भी कैसे, मैं सारी रैन सो न सका।
परछाई बनकर रहते थे मेरी, अब बस ख्वाब बनकर रह गया है। अब ना शायद दीदार-ए-नैन हो उसका, हर ख्याल कह गया है।
कब्र में जाने तक टूट जाएगा, उससे तलूक रखता हर ख्वाब। पूछुंगा उस खुदा से, क्या होगा अधूरे इश्क़ का कोई जबाब।
हकीकत बनने से पहले ही मेरे ख्वाबों का महल ढह गया। ऐसी बरसी यार की इनायत, उस बारिश में सब बह गया।
चाहत हुई ना मुकम्मल, बस चाहने के ख्याल रह गए हैं। ना वो आए, ना उसकी कोई खबर, बस ख्वाब रह गए हैं।
यूँ तो वो खफा रहते हैं मुझसे, बस ख्वाबो में मिलने आते हैं। कहने को तो कहते हैं प्यार नहीं तुमसे, फिर क्यू सताते हैं।
जानते हैं अधूरी हैं ख्वाहिशें, झूठे हैं ख्वाब सारे, वो कभी हकीकत ना बनेंगे। झूठी आश भी जरुरी है जिन्दा रहने के लिए, वरना दीवाने मोहब्बत ना करेंगे।