सुनो तो! हिंदी शायरी
सुनो तो! बिन तुम्हारे हम जीये कहाँ थे।
आवाज पहले भी दी थी, मगर तुमने अनसुना कर दिया।
सब कुछ होते हुए भी, हम तुम्हारे कुछ नहीं कह दिया।
सुनो तो! बिन तुम्हारे फूल खिले कहाँ थे।
तुम्हारा बिछड़ना वो महके गुलशन बंजर सा कर गया।
बरखा आई, ना कालिया मुस्कुराई, बस आंसू भर गया।
सुनो तो! बिन तुम्हारे सुकून मिले कहाँ थे।
तिनका तिनका जोड़ बनाया आशियाँ की बस दीवारे रह गई।
संग तुम्हारे बटोरी थी खुशिया, वो दरिया-ए-अश्क में बह गई।
सुनो तो! वहीं हैं हम तुमने छोड़े जहाँ थे।
आज भी दीदार-ए-हुजूर के इंतजार में पलकें बिछी हैं।
खरीददार तो बहुत आए, मगर मेरी आँखे ना बिकी हैं।
सुनो तो! सुनो तो! सुनो तो! सुनो तो!
सुनो तो! बिन तुम्हारे यादों के कारवां थे।
आशियाँ के हर झरोखे से तुम्हारी याद आती रही।
तेरी राह तकती आँखों को, तेरी याद रुलाती रही।
सुनो तो! बिन तुम्हारे हम कितने तन्हां थे।
कुसूर क्या था मोहब्बत का, मुकददर हुई तन्हाई है।
मिली तेरे दीदार की चाह में तरसे नैनो को ललाई है।
सुनो तो! तुम्हारी अदाओं से कब खफा थे।
तुम्हारी अदाओं पर तो फ़िदा थे, हम तो खुद से खफा थे।
पूछ तो लिया होता रूठने से पहले, क्या वो हमारे दगा थे।
सुनो तो! सोचा कभी हम कब बेवफा थे।
वो वक़्त की आंधी का खेल था सारा, हम ना कुसूरवार थे।
खुद के दिल पर लिए थे जख्म सारे, हम ना बेवफा यार थे।