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COVID-19, Coronavirus emotional shayari
जग सारे में कोरोना का कहर, कैसी ये बीमारी है।
रोटी को तरस गए, तो कहीं दवाई की मारामारी है।
होठों की मुस्कान रूठ गई, अब चेहरों पर परेशानी है।
आँखों में नमी लोट आई, करीब करीब ये ही कहानी है।
कोई जीये तो जीये कैसे, यहाँ दवा की कालाबाज़ारी है।
रोटी को तरस गए ……………………………………………..
खिलखिलाना जैसे भूल गए, अपने ही अपनों से दूर गए।
दो गज की दूरी मास्क के चक्कर में चेहरों के नूर गए।
कोई करे भी तो क्या करे, बेबस दुनिया ये सारी है।
रोटी को तरस गए ……………………………………………..
बारिश के दिन थे मगर कहर ऐ कोरोना बरसा है।
मुरझा गए गुलशन, साँस लेने को इंसान तरसा है।
कौन किसको सुनाये, के गलती हमारी या तुम्हारी है।
रोटी को तरस गए ……………………………………………..
लॉकडाउन हुआ है और शहर लगता है उजड़ा उजड़ा।
किसी से पूछ लो दिल का हाल, हर कोई उखड़ा उखड़ा।
मानो या ना मानो दो गज की दुरी समझदारी है।
रोटी को तरस गए ……………………………………………..
नगर नगर शहर शहर पर भारी है, कोरोना की जो बीमारी है।
वक़्त का खेल सारा इसमें गलती हमारी ना तुम्हारी है।
मुखोटों पर पर्दे डाल लो, अगर जान प्यारी है।
रोटी को तरस गए ……………………………………………..
महंगाई भी सर चढ़के बोली, ऊपर से घर में कैद है।
भूख प्यास से तड़पी जान, और आगमन भी रद है।
सांसे बिकने लगी, कालाबाज़ारी हर हाल जारी है।
रोटी को तरस गए ………………………………..